*भूमिका* सृष्टि के आध्यात्मिक क्षेत्र में परम लक्ष्य की प्राप्ति, अभीष्ट की प्राप्ति और पूर्णता की प्राप्ति, मोक्ष की प्राप्ति, मोक्ष की प्राप्ति होती है, जिसमें मंत्र अनुष्ठान, तंत्र अनुष्ठान, साधना, पूजा और पाठ का अनुष्ठान अखंड होता है। और अनन्त महिमा. हमारे नाथ सिद्धों ने ऐसे ही मन्त्र योग, तन्त्र योग, हट योग, लय योग, नाद योग, ज्ञान योग इत्यादि साधनाओं के द्वारा परम परमात्मा अलख निरन्जन का साक्षात्कार प्राप्त किया है। अपने सिद्ध सद्गुरुजी एवं विराट शक्तियों द्वारा अनुग्रहीत अनुष्ठान से साधक परम पद, मोक्ष, मुक्ति तक प्रतिष्ठित हो जाता है। इस पावन भूमि पर मानव मात्र प्राणी पूजा साधना कर्म किये बिना नहीं रह सकता। वह किसी न किसी की पूजा अवश्य करेगा। कोई मातृ-पितृ या सद्गुरुजी की सेवा पूजा करता है तो कोई भाई, बहन, पति, पत्नी, मित्र, अतिथि की सेवा पूजा करता है या कोई अपनी मातृभूमि, गांव देश इत्यादि की सेवा पूजा करता ही है। बिल्कुल सहजता से किसी न किसी रूप में किसी न किसी की सेवा पूजा जरूर करेगा । विशेषतः विभिन्न देवी देवता एवं अपने इष्ट की पूजा साधना बड़ी श्रद्धा से करते हैं। यह एक उत्तम संस्कार है जहां सहृदय प्रेम-भक्ति- वात्स्यल्य एवं परम शान्ति का अटूट सत्य अनुभव होता है। इस कर्मों द्वारा सह आदर, सदाचार, सद्गुण, शिष्टाचार शिस्त एवं आध्यात्मिक शाश्वत आनन्द की प्राप्ति होती है। इस प्रकार की पूजा पाठ साधना कोई सत्य - अविनाशी एवं शाश्वत की करते हैं तो कोई असत्य - अनित्य नाशवत एवं अशाश्वत की करते हैं। कोई शास्त्रीय करते हैं तो कोई अशास्त्रीय करते हैं या तो कोई मनमानी से करते हैं, कोई-कोई तो भ्रम में लिप्त हो जाते हैं। इसलिए शास्त्रों में पूजा के तीन प्रकार बताए गए हैं, एक वैदिक विधि से, दूसरा तांत्रिक विधि से और तीसरा दोनों वैदिक तांत्रिक विधि से। शास्त्रोक्त तंत्रों में वैदिक, शाबर, बौद्ध श्री नाथ रहस्य कापालिक कौल विद्या घोर-अघोर तिब्बतीय तन्त्र तथा विभिन्न भाषाओं में इत्यादि तन्त्र-मन्त्रों का समावेश है और यह पूजा पाठ साधना करने का अधिकार शास्त्र विधि विधान जानने वाले को ही होता है। विशेषत: प्राप्त साधक को, सदगुरु। अतः इन पूजा साधनाओं में या भक्ति साधना में या कर्म साधनाओं में या किसी भी प्रकार के सेवा साधनाओं में मुख्यत: तीन भागों में विभाजन होता है- (१) सात्विक साधना (२) राजसी साधना (3) तामसिक साधना (१) सात्विक साधना- बिल्कुल निःस्वार्थ होती है, जिससे साधक अन्त में मोक्ष मुक्ति को प्राप्त होता है । (२) राजसी साधना- इसमें साधक का कोई न कोई स्वार्थ अवश्य होता है जिससे पुण्य प्राप्ति पाकर भविष्य में स्वर्ग सुखों को प्राप्त होता है । किन्तु जब तक पुण्य संचय साधक के पास होता है तब तक ही वह स्वर्ग सुखों का भागी होता है। आगे फिर वही जन्म-मृत्यु के चौरासी योनि चक्र में आना पड़ता है। (३) तामसी साधना - यह साधना शास्त्रों के या धर्म के विरुद्ध करते हैं। जो नीति नियमबाह्य होती है। इससे साधक अन्त में दु:ख, क्लेश को प्राप्त होता है। अतः शास्त्रीय पूजा अर्चना, विधि विधान कर्मकाण्ड एवं साधना करने हेतु नाथ सिद्ध महात्मा, सन्तगण तथा साधक भक्त सेवकों एवं समस्त मानव प्राणीमात्र की आकांक्षा - आग्रह को मद्देनजर रखते हुए मेरे सद्गुरु जी योगी आनन्दनाथ जी (महामंत्री योगी महासभा ) इन्हीं की कृपा - आदेश प्राप्त होने पर मैंने यह " श्री नाथ रहस्य" नामक ग्रन्थ की रचना करने का प्रयास किया है। यह मेरा अहोभाग्य है कि मेरे सद्गुरुजी की असीम कृपा आशीर्वाद से यह परिश्रम करने का अवसर मुझे मिला। कलियुग में शबरी मंत्र-तंत्र अत्यंत प्रभावशाली एवं कल्याणकारी है। पूर्वकाल में परमपिता परमेश्वर प्रथम पुरुष योगी आदिनाथ जी एवं उनके शिष्य माया रूपी दादा मत्स्येन्द्रनाथ जी ने शबरी मंत्रों की रचना की तथा क्षेत्र त्र्यंबक अनुपन शिला (महाराष्ट्र) के सिंहासन पर बैठकर दुल्ला धर्मराज श्री शंभूजाति गुरु गोरक्षनाथ जी ने नवनाथ एवं अनंत प्रदान किये कोटि सिद्धों ने यह शबरी मंत्र - तंत्र माँ बिमला, योगिनी, शक्ति पार्वती स्वरूपी उदयनाथ और नागार्जुन नाथ जी जैसे नाथ सिद्धों द्वारा सिखाया गया था। तो यहां प्रस्तुत हैं कुछ पुराने हस्तलिखित मंत्र, कुछ प्राचीन गुप्त एवं गोपनीय मंत्र तथा हमारे नाथ सिद्धों द्वारा प्राप्त कुछ मंत्र रचनाएं। प्रथम खण्ड में आपको नाथ सिद्धों का नित्यकर्म, श्री गणेश-गौरी, मुख्य कलश (चौकी) इनका स्थापना पूजन तथा नाथ सिद्ध योगियों की शक्ति पूजन तथा यन्त्र, श्री नाथ सिद्धों का परम्परा पूजन, साधक कर्म, नवनाथ चौरासी सिद्धों का यन्त्र एवं विधि विधान पूजन, श्री सर्वतो महारुद्र चक्र, विशेषत: श्री नाथ सिद्ध यन्त्र का सम्पूर्ण विवरण, गुरु गोरक्षनाथ जी का सम्पूर्ण रूप से पूजन एवं उनका शाबरी बीज मन्त्र का अनुष्ठान तथा ज्ञान चालीसा, ज्ञान तिलक आदि ज्ञानों के पाठ का समावेश है। द्वितीय खण्ड में श्री नाथ सिद्धों का धूना एवं हवनादि पूर्ण विवरण, प्रातः संध्या आरती वर्णन तथा पारम्परिक नाथ सिद्धों का भण्डार घर (ऋद्धि-सिद्धि) का सम्पूर्ण विधि विधान प्राप्त होगा; कुछ पंचतत्व, योगिक सिद्धि साधना एवं तन्त्र-मन्त्र सिद्धि साधना का विधि विधान प्राप्त होगा। श्री नाथ जी की शब्दियां एवं विभिन्न अभिषेक तथा निद्रा के विधि नियम इत्यादि विषय की जानकारी विस्तृत भाव से प्राप्त होगी । तृतीय खण्ड में प्रचलित नाथ शब्द निवृत्ति, सद्गुरु महिमा एवं यन्त्र, गुरु-चेला (शिष्य) बनाने की विभिन्न विधि नियम नवनाथ उत्पत्ति, अनेकों गायत्रियाँ, नवनाथ बोध, शाबर मन्त्र महिमा, शाबर मन्त्रों द्वारा नाथ साहित्य त्रिशूल, खप्पर, चिमटा इत्यादि को सिद्ध करने की विधियां तथा गोरक्ष किल, मोहम्मद बोध जैसे प्रधान मन्त्रों के विधि नियम, नाथ सम्प्रदाय के बारह पंथ वर्णन तथा हरिद्वार, इलाहाबाद, उज्जैन एवं त्र्यम्बक क्षेत्रों में नाथ सिद्धों की महाकुम्भ पर्व के विधि विधान, पात्र -छत्र पूजन, ५१ शक्ति पीठ, नाथ सिद्धों की जमात तथा मृत्यु उपरान्त नाथ सिद्धों की समाधि क्रियाओं की विस्तृत जानकारी प्राप्त होगी। अन्त में नाथसिद्धों की बोली-भाषा, कोड भाषा एवं सम्पूर्ण पूजा-पाठ विधि की साहित्य सूची इत्यादि का बहुत ही रोचक एवं सुचारुबद्ध विश्लेषण का लाभ होगा। अतः यह कहते हुये हर्ष होता है कि गोरखनाथ मन्दिर, गोरखपुर के पीठाधीश्वर श्री महन्त योगी अवेद्यनाथ जी सभापति-योगी महासभा (पूर्व सांसद लोकसभा) इन्हीं की कृपा आशीर्वाद से एवं सहृदय प्रेरणा से मेरा यह प्रयास सफल रहा। हमारे गुरु गद्दी अस्थल बोहर (हरियाणा) के महासिद्ध श्री बाबा मस्तनाथ मठ के मठाधीश सिद्ध योगी महन्त चांदनाथ जी महाराज (उपसभापति योगी महासभा) इन्हीं की कृपा एवं शुभाशीर्वाद से मुझे इस लक्ष्य की प्राप्ति हुई है। इस ग्रन्थ के साधना द्वारा सगुण अर्थात् द्वैत सिद्धान्त से निर्गुण अर्थात् अद्वैत सिद्धान्त की प्राप्ति हो सकती है। इस ग्रन्थ के अन्तर्गत देवी-देवता नाथ सिद्धों के पूजन द्वारा कर्म योग एवं भक्तियोग का लाभ होगा, तो मन्त्र तन्त्र अनुष्ठानादि द्वारा ध्यान योग का लाभ होगा तथा तन्त्र सिद्धियों द्वारा तन्त्रयोग का लाभ होगा तो यौगिक सिद्धियों द्वारा समाधि योग, हटयोग, लय योग की प्राप्ति होगी, उसी प्रकार ज्ञान पाठों द्वारा ज्ञान योग का अनुभव होगा । इस ग्रन्थ में नाथ सिद्ध सम्प्रदाय की समूची सभी गुप्त एवं अत्यन्त गोपनीय प्रकार की कर्म - साधना एवं अनुभव का सम्पूर्ण विवरण मिलेगा। जहां जो भी आवश्यकता हो वहां यह लिखित रचनायें सरलता से जानकारी देने का प्रयास किया है। यह तीनों खण्डों की कर्म - विधि साधना साधक अखण्ड अनुष्ठान करके शुरू से लेकर अन्तिम तक सम्पूर्ण विधि विधान कर सकता है। उसी प्रकार साधक यह विधि विधान पृथक-पृथक भी समय अनुसार कर सकता है। इसमें धनवान धन द्वारा विस्तृत रूप में विधि कर्म कर सकता है। तो विरक्त या सर्वसाधारण व्यक्ति भी केवल विभूति द्वारा एवं मानस कर्म द्वारा विधि विधान कर सकता है। इस प्रकार की सुविधा के कारण साम्प्रदायिक एवं सामाजिक कोई भी व्यक्ति इससे लाभान्वित हो सकता है। इस ग्रन्थ में मन्त्र-तन्त्र पूजन पाठ विधि विधान एवं साधना इत्यादि सभी उच्चारण, अर्थपूर्ण और साधना सरल भाषा में वर्णित है, इसलिये सर्वसाधारण व्यक्ति को भी सुलभता से जानने का या करने का अवसर अवश्य मिलेगा। इस ग्रन्थ रचना कार्य में मेरे गुरु भाई योगी राकेशनाथ जी (सहायक मंत्री योगी महासभा ) योगी प्रमोदनाथ जी (प्रबन्धक), योगी मोतीनाथ जी ( उपप्रबन्धक) योगी देवनाथ जी (सम्पादक आदेश जगत) एवं मेरे नाथ साम्प्रदायिक नाथ सिद्ध महात्माओं ने सहृदय सद्प्रेरणा दी। अतः इन सभी का मैं सविनय आभारी रहूंगा। मुझे पूर्ण आशा है कि सभी सिद्ध योगी, जोगी, नाथ, सन्त, भक्तगण इस ग्रन्थ से लाभान्वित होंगे। लेखनी, में हुई अशुद्धियों के लिये मैं क्षमा प्रार्थी हूं। (योगी विलासनाथ - पुजारी) गुरु गोरक्षनाथ मंदिर, हरिद्वार
श्री नवनाथ स्वरूप दर्शन श्री पार्वती श्री ज्योती श्री एस.एम श्री शिव श्री श्री मत्स्य) भारत श्री गणेश सत नमो आदेश गुरु जी को आदेश। ॐ गुरुजी. ओंकार बोलें आदि नाथ (ओंकार) ज्योति स्वरूप। उदयनाथ पार्वती (पृथ्वी) के रूप में बोलो। (जल) रूप सत्यनाथ ब्रह्म बोलो। संतोषनाथ विष्णुजी का स्वरूप (तलवार खंड तेज) बोलें। शेष (वायु) रूप अचल-अचम्भेनाथ बोलें। गजबेलि गज कंठरनाथ गणेशजी (हाथी हाथी) के रूप में बोलें। ज्ञान पारखी सिद्ध चौरंगी नाथ चंद्रमा का स्वरूप (अठारह भार वनस्पति) बताते हैं। माया स्वरूपी दादा मत्स्येन्द्रनाथ (मत्स्य) माया स्वरूप बोलो। घाटे पिंडे नव निरंतर रक्षा करे श्री शंभूजाति गुरु गोरक्षनाथ शिव (बालक) स्वरूप बोलिए। श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश आदेश।। ( प्रथम खण्ड ) साधक तथा योगेश्वरों का प्रतिदिन अखण्ड- नित्यकर्म साधक तथा योगेश्वर प्रात: चौथे प्रहर में उठकर अपने आसन पर पदमासन सिद्धासन, गोरक्षासन इ० अपने अनूकूल आसन में शरीर को बिल्कुल सीधा रखते हुये बैठ जाये। अपनी आंखों की दृष्टि दोनों भौंओं के aai बीच कपाल भ्रूमध्य में स्थिर करे। अपने शरीर में हंस मन्त्र जपा-अजपा का अभ्यास करे । अर्थात यह जपा-अजपा का जाप इक्कीस हजार छैसो स्वांस संख्या नित्य निरंतर चलती रहती हैं। अतः साधक प्रथम अपने सतगुरुजी का स्मरण करे फिर गुरु मन्त्र का जाप करे या गुरु गोरक्षनाथ जी के बीज मन्त्र का ध्यान करें । बीज मंत्रः 'ॐ शिव गोरक्ष योगी' तथा गुरु गोरक्षनाथ जी के बारह नामों का स्मरण करें। " गुरु गोरक्ष के बारह नामों का पाठ करें सत नमो आदेश. अध्यापक को आदेश दें. ॐ गुरुजी. श्री शम्भुजाति गुरु गोरक्षनाथ जी के बारह नामों में से कौन सा नाम बोलें? ॐ गुरूजी प्रथम निरंजन नाथ जी द्वितीय श्री सुधबुधनाथ जी तृतीय श्री कालेश्वर नाथ जी चतुर्थ श्री सिद्ध चौरंगी नाथ जी पंचम श्री लालग्वाल नाथ जी षष्ठम, सातवें में श्री विमलनाथजी, सातवें में श्री सर्वांगनाथजी, आठवें में श्री सत्यनाथजी, नौवें में श्री गोपालनाथजी, दसवें में श्री क्षेत्रनाथजी, ग्यारहवें में श्री भुचरनाथजी और बारहवें में श्री गुरु गोरक्षनाथजी। ओम नमो नमो गुरुदेव को, नमो नमो सुखधाम। नामलिये से नर उबरे, कोटि कोटि प्रणाम। यह श्री शम्भुजाति गोरक्षनाथ जी के बारह नाम हैं जिनका जप करने से पाप, मोक्ष और मुक्ति क्रमशः दूर हो जाती है। नाद सील ज्योति को प्रकाशित करती है और शरीर ज्ञान को प्रकाशित करता है। श्री नाथजी गुरुजी को आदेश | अत: साधक को नवनाथ नाम स्वरूप का जप करना चाहिए। *नवनाथ स्वरूप* सत नमो आदेश. अध्यापक को आदेश दें. ॐ गुरुजी बोलो ओंकार आदि नाथ ओंकार रूप। उदयनाथ पार्वती बोलो पृथ्वी का स्वरूप। पानी के रूप में सत्यनाथ ब्रह्मा बोलें। संतोषनाथ विष्णुजी खड़ग - खांडा तेज के रूप में बोलें। अचल अचम्भेनाथ आकाश रूप से बोलो। गजबेली गजकंठनाथ गणेश गज हस्ति रूप में बोलें। ज्ञान-साधक सिद्धचौरंगी नाथ अठारह भार वनस्पति के रूप में बोलते हैं। बोलो दादा मत्स्येन्द्रनाथ, माया के स्वरूप में, माया के स्वरूप में। घाटे पिंडे नव निरंतरे संपूर्ण रक्षा कारंते श्री शंभूजाति गुरु गोरक्षनाथ बाल स्वरूप बोलिए। इस प्रकार नौनाथ स्वरूप मन्त्र पूर्ण एवं अनन्त हो गया कोट सिद्धों में बैठकर गुरु गोरक्षनाथ जी ने कहाया नाथजी गुरुजी आदेश । तदनन्तर योगेश्वर ने धरत्री गायत्री का जाप करके अपने नासिका कि बायां स्वर चले तो प्रथम बायां पैर या दायां स्वर चले तो दायां पैर अथवा दोनों स्वर चले तो दोनों पैर धरती के ऊपर रखें और नमस्कार करें। *धरती गायत्री* सत नमो आदेश गुरुजी को आदेश । ॐगुरुजी ! आद अलील अनाद उपाया सत्यकी धर्ती जुहारलो काया, पहले जल, जल पर कमल, कमल पर मच्छ, मच्छ पर कोरम कोरम पर वासुकी, वासुकी पर धौल बैल धौल बैल पर सींग, सींग पर राई, राई पर श्री नाथजी ने नवखण्ड पृथ्वी ठहराई। प्रथमे धरत्री दूसरे में विश्वंभरा, तीसरे में मेरु मेदिनी, चौथे में चतुर्भुजी, पांचवें में कृतिका, ब्रह्मचंडी, सातवीं में शिवकुमारी, आठवीं में बाला बज्रजोगिनी, नौवीं में नवदुर्गा, दसवीं में सिंहभवानी, ग्यारहवीं में मृतिका नाक, द्वादशी वरदायिनी। धरती माता पिता काश, जीवन का शरीर सो पर निवास। तोपर तेकु दोनो पै, अगमदे मैलागु पै ॥ धरती माता तू महान है, तुझसे महान कोई नहीं। जो पग तेकु तोपर मोपर कृपा सुहोय॥ पृथ्वी बारह नामों का पाठ करती है और गुणों का ध्यान करती है। योगी के सभी कार्य सिद्ध होते हैं। इतना कि धरात्री गायत्री के बारह नामों का जप पूरा हो गया। करोड़ों सिद्धों के बीच श्री नाथजी ने कहा, “श्री नाथजी गुरुजी को आदेश, दादा मत्स्येन्द्रनाथ के चरणों में प्रणाम। मैं देवी भूदेवी की शरण लेता हूं, जो औषधीय जड़ी-बूटियों से भरा बर्तन रखती हैं और जिनका सुंदर कमल चेहरा सभी प्रकार की फसलों का निवास है। समुद्री वस्त्र में देवी. पर्वत वक्ष मण्डल में। हे भगवान विष्णु की पत्नी, मैं आपको प्रणाम करती हूं। कृपया मुझे क्षमा करें। कृपया अपने चरण स्पर्श करें। तो पैर उठाते समय निम्नलिखित मंत्र का जाप करें। सत नमो आदेश । गुरुजी को आदेश । ॐ गुरुजी । जिस दिशा को सुर वहत चलै, अवर चलनको चित्तु । सोई पग आगे धरौ वेद कहे यहु हित्तु ॥ चारी मंगला पांचों रवि प्रिय शशि सूर । गोरख जोगी भाखिया यही जीवन का मूर ॥ यह प्रक्रिया होने के बाद धरत्री पर पांव रखे तथा धरत्री माता को नमस्कार करे । अतः निम्न जल मन्त्र से हाथ पांव धोयें तथा पानी पीवे । जल मन्त्र सत नमो आदेश. अध्यापक को आदेश दें. ॐ गुरुजी. ॐ अलख निरंजन तेरी माया। जल बिंबया विद्महे नील पुरुषाय धिम्मह तन्नो अलिल प्रचोदयात्। नाथजी गुरु जी को आदेश. अत: श्रीगणेश मंत्र से शरीर को शुद्ध करें। गणेश मंत्र सत नमो आदेश. गुरुजी का आदेश. ॐ गुरुजी. मूलाधार चक्र का ॐ करलो पाक परसो परम ज्योति प्रकाश गणपत स्वामी सन्मुख रहे, शुद्धि बुद्धि निर्मली गहे ॥ गमकी छोड़ अगमकी कहे। सतगुरु शब्द भेद पर रहे ॥